ढूँढता क्यों अपनी ख़ुशी, खुद से दूर जाकर
फिर लगा गले ज़िन्दगी, पास आकर
सब वही, सब वैसा हैं, जैसा छोड़ा जस
कुछ मुसाफिर, और साथ क्या यही गम बस
छोड़ हठ, स्वीकार सच,
देख बाँहे, खुली हैं सब
धिक्कार दे, घटनाओं को, सीख उनसे कुछ
पर मत बदल इंसान को, अपना उन्हें फिर भी